शनिवार, 25 जुलाई 2009

एक वो भी दिवाली थी...!

कोई किसीकी या अपनी जीवनी क्यों लिखना चाहता है..हरेकका अलग,अलग मक़सद होता होगा......कोई ऐसी पुर ख़तर राहोंसे गुज़रा हो...और चाहता हो,कि, आनेवाले राहगीर आगाह हो जायें...समझ लें, कि,इन राहोंपे कैसे ख़तरे हो सकते हैं...कोई मनुष्य किसीका अटल प्राक्तन तो नही बदल सकता...सिर्फ़ उन राहोंसे गुज़रा हो, जहाँ दर्द ही दर्द बिछे हों, काँटें ही काँटे हो तो ,सँभाल के पैर रखने के लिए कह तो सकता है...

इस मालिका का यही मक़सद है...ये सत्य कथा है...एक ज्वलंत ज़िंदगी की दास्ताँ सुनाने जा रही हूँ...जिन चंद लोगोंको बेहद क़रीबसे जाना है...इस सफ़र में वो शामिल होंगे....पाठक ज़रूर उनसे प्यार करेंगे..क्योंकि वो हाड मास के बने इंसान थे...!

आगाज़ कर रही हूँ....

भाग १ ) एक वो भी दिवाली थी...

हिन्दुस्तानका एक दूरदराज़ गाँव। एक जवान जोड़ा, अपने मरमरी महल छोड़ आज़ादी की जंग में कूद पड़ा था.....सर्वस्व निछावर कर दिया...अपनी इकलौती औलाद को २५ साल अपने से दूर रखा, ताकि, ये लोग जेल के अन्दर बाहर रह पाते.. ...उस ज़माने में परिवार नियोजन कर एक मिसाल क़ायम की...देश अधिक महत्त्व रखता था..

महिला एक राजघरानेकी की बेटी थी...पती उसी ऐशो आरामका आदि...उस महान हस्ती की आवाज़ सुनी,जिसका नाम गांधी था...,और ये जोड़ा हर आराम,हर ऐश छोड़, ग्राम सेवा की खातिर दौड़ पड़ा। गाँव , गाँव में जागृती फैलानी थी...केवल आज़ादी को लेके नही...पुराने अंधविश्वास और छुआ छूत को लेके भी...!
नज़ाकत और नफ़ासत जिस औरत के चेहरेसे टपकती थी, हर हाव भाव में समाई हुई थी...उसने मिट्टी का कमरा अपना घर बनाया...गाँव के कुएँसे पानी खींचके घरमे लाती रही...

आज़ादी के दीवानों की कुर्बानियाँ रंग लाईं..जश्न मन चुके...ऐसे थे ये आज़ादी के परवाने...उन्हें ये कुर्बानी तो लगी ही नही...अपनी खुश किस्मती लगी...ये अब ये जोड़ा, जिन्हों ने खेती व्यवसाय चुना था, अपनी निजी जीवन में चंद खुशियों का इंतज़ार कर रहा था..दो साल से कुछ अधिक हुआ था...जब बेटे का ब्याह हुआ...बहू अपनी ज़चगी के लिए अपने नैहर गई हुई थी...

ऐसी ही एक शाम...लेकिन इस जोडेको किसी ख़ास ख़बर का इंतज़ार था...बहू की ज़चगी का....दोनों सपने बुनते रहते...बेटा बहू के पास गया हुआ था..लक्ष्मी पूजन का दिन था...

ये दोनों अपने घरसे खेत में टहल ने निकल ही रहे थे,कि, टेढी मेधी पगडंडी से साइकिल चलता तारवाला इन्हें दिखायी दिया...!
दादाजी बोले :"देखो,देखो , तार आयी है...देखें क्या ख़बर है...!"
दोनों के प्राण आँखों में आ गए...गाँव में इस जोड़े की बेहद इज्ज़त होती थी...तार वाला अंग्रेजी तो पढ़ नही सकता था..लेकिन सारे ग्राम वासियोंको पता था, किस ख़बर का इन दोनोको इतना अधिक इंतज़ार था...ख़बर पढ़ते ही दोनों उछल पड़े...महिला अन्दर गई,और, इस मौके के ख्याल से रखी रक़म उठा लाई...अर्धशतक पूर्व की बात है...२५ रुपये तारवाले के हाथ पे थमाए गए...
उन दिनों इनते रुपये बड़ी मायने रखते थे...ये जोड़ा ख़ुद, बड़ा मितव्ययी था...ज़रूरत के अलावा व्यय मंज़ूर नही था...वस्त्र,रहन सहन, हरेक प्रकारमे सादगी, लेकिन सुरुची छलकती थी...
तार वालेने रुपये देखे तो उनके पैर छूने लगा,जो दादा जी ने मना किया...
वो बोला:" बाबा, आपको ज़रूर पोता हुआ है...ये दीवाली आपके लिए बड़ी शुभ बनके आयी..."

दादा: " अरे पगले, पोता हुआ होता तो शायद फूटी कौडी तक न देता...ये तो हमारे घर पोती हुई है...अब लडकी आयेगी हमारे घर..लक्षी पूजन के दिन जन्मी है...आगे जोभी नाम रखेंगे,उसके पहले," पूजा" नाम जुडेगा...!

वो तारवाला ये बात सुन किंचित हैरान हुआ...! ऐसी क्या वजह होगी उसकी हैरानी की? वो जोड़ा मुस्लिम परिवारसे ताल्लुक रखता था!!...आज़ादी की जंग में नामवर,लेकिन अपने आपको सिर्फ़ हिन्दुस्तानी केहेलवाना उन्हें अच्छा लगता......तारवाले को ये सब बातें कहाँ पता?

पूजाके आगे नाम तो जुड़ा...'तमन्ना'.....किन दिलों की तमन्ना थी वो...किन,किन आँखोंका सितारा थी वो...

दादी बनी महिला के खुशी के मारे होंठ काँप रहे थे... बुनाई कढाई तो उसने कबकी शुरू कर दी थी...लेकिन अबतो लडकी को मद्देनज़र रख चीज़ें बनानी थी....बहू को लौटने में ४२ दिन थे...तबतक सर्दियाँ शुरू होनी थीं...जनम १८ अक्टूबर का था...दिसम्बर का माह होगा जब वो ट्रेन से स्टशन पे उतरेगी....! नाज़ुक-सी जान...बैल गाडी सजेगी...उसपे छत लगेगी...अन्दर गद्दे...तकिये...

अब तो दोनों पती पत्नी एकेक दिन गिनने लगे....वो आएगी, वो आयेगी....! कौन थी वो खुशनसीब.....??पूजा??तमन्ना ??दोनों...?

क्रमश:

अगली कुछ कड़ियों में मै चंद तस्वीरें,गर हासिल हुई तो पोस्ट करुँगी...ये वादा रहा,क्यों कि , उस लडकी को बड़ी क़रीब से जाना है मैंने.....जिस दिन वो लाडली अपने घर बड़े नाजोंसे पधारी....और जब वो छः माह की हुई...उसका पुश्तैनी घर, जो उसके दादा ने मिट्टी के कमरेसे निकल,एक पत्थर का पक्का ,लेकिन छोटा-सा मकान बनवा लिया था..